Sunday, April 13, 2014

saundrya ki mithai..

सौंदर्य की मिठाई ....क्या है ?किसी अत्यंत रूपवती तरूणी को देखकर मन में जो मादक सुख उत्पन्न होता है,वही सौंदर्य की मिठाई है। 

विषय माधुर्य ,विषय दोष और विषय मुक्ति  को  ठीक प्रकार से जानता है,वह स्वयं विषयो का त्याग कर देता है ,और दूसरों को भी विषयों के त्याग का उपदेश करता है ।

Sunday, June 23, 2013

khoj ka padav

मेरी खोज को एक पड़ाव मिल गया ..जीवन की पहेली कुछ समझ में आई है / मुझे शुरू से ही जिज्ञासा थी ....मानव ,आत्मा,परमात्मा इनका आपस में क्या सम्बन्ध है /संसार में विषमता क्यूं है ...कोई अमीर है कोई गरीब ......ये भाग्य का क्या खेल है ...क्या इनके पीछे कोई नियम है यदि है तो क्या ..आदमी जन्म क्यूं लेता है… क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिसमे जन्म से छुटकारा मिल जाता है. ..छुटकारा पाने के बाद फिर क्या होता है ...बहुत सारे ऐसे सवाल मन में चलते रहते है।अलग अलग धर्मो ने इन को अलग अलग तरीके से बताया है… पर मेरे मन को इनका जवाब  मिल नहीं पा रहा था ...जब मैं सब को जोड़ ने लगता तो कोई भी मॉडल सही नहीं बैठता ...मुझे संयोग से बुद्ध के बारे में पढने को मिला उनकी मुझे बहुत सी बाते बिलकुल अपने सवालो के उत्तर के रूप में लगी ...उन्होंने कहा आत्मा परमात्मा भ्रामक शब्द है… इनसे मानव का कोई हित सिद्ध नहीं होत….मैंने या शायद किसी ने भी अब तक इनमे से किसी को नहीं देखा है… मेरी तो ७० % माथापच् ख़त्गयी।शायद ..अंतर्मन से मेरी भी यही आवाज थी जो अब तक दबी हुई थी।एक प्रश्न का उत्तर तो मिला  ...बड़ी उपलब्धि थी।फिर उन्होंने कहा ..धर्म का विषय मानव का पहले खुद से फिर उसके बाद अन्य से सम्बन्ध होना चाहिये ...तभी वोह मानव के लिए उपयोगी है… किसी अन्य काल्पनिक ईश्वर।उन्होंने कहा ...आओ और देखो… 
किसी पर भी आँख मूदकर मत विस्वास करो।मेरे पर भी ....अपने विवेक पर विस्वास करो तुमको जो उचित लगे वह करो ..अपने द्वीप स्वयं बनो…. खुद को अपना आधार बनाओ।
उन्होंने कर्म नियम को सही बताया ...जो बोओगे वाही काटोगे ..यही नियम विसमता के पीछे है… थोडा जटिल भी है इसलिए कुशल और अकुशल कर्म को जानो ...तथा उसका पालन करो।
बुध ने बतया की संसार में दुःख है ..इनको जानो (जन्म ,ज़रा ,व्याधि,दौर्मनस्य  और कुछ स्वयं जनित) और दुःख से निकलने का मार्ग है ......
व्यक्ति को मैत्री ,करुणा ,मुदिता और उपेक्षा को जीवन में समाहित कर लेना चाहिये ..इसी मार्ग पर चलके दुःख को जीवन में कम किया जा सकता है। ..जीवन का पालन आलस के साथ नहीं कर्ममय होकर करना चाहिए ...कर्म कुशल हो ..अन्यथा वो दुःख का कारण बनेगे ..इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।मन और चित्त हमारे
अंदर विद्यमान है इनका नियमन बहुत आवश्यक है ...मन की विचारों की श्रंखला तोड़ने के लिए सतर्क रहने की ज़रुरत है। अपनी देह का ,विचारो का ,चित्त की अवस्था और मनोवृति पर सतत ध्यान रखने से हम सतर्क रहने लगते है.
और अंतिम मानव की देह मरणशील है ...संसार अनित्य और चिर परिवर्तनशील है।







 
Now these days, I am involved in meditation..as I practise it almost daily...It is really staisfying and fulfilling
In my search of truth of life I found teaching of Budhha and his religion the most appropriate for myself in the present time frame..
Its beautiful perception make quality of life better...

it says human are  just part of this nature...It is the nature who rules not
human...one should know it...change is universal truth
   

Saturday, August 13, 2011

मोती खोजने निकला हूँ 
सागर का रास्ता पकड़कर 
उसके तट पर खड़ा हूँ
संशय में हूँ...............
सोचता हूँ यहीं खड़े -२
कोई मोती बहकर आ जाये 
अन्दर पानी में घुसना नहीं चाहता 
कुछ भय है कुछ प्रमाद 
पर क्या किनारे खड़े रहकर 
किसी को कुछ मिला है.....
नहीं!!!!!!!!!!
मोती के लिए सागर में
गोता तो लगाना ही पड़ेगा......! 

Monday, June 13, 2011

if somebody says me to make tajmahal,i will not say promptly that are you mad.. is it possible in this era..instead i should start to work over it bit by bit..it is the positive attitude which is found
in winners...they search way to get the work done inspite of mountain like difficulties n obstruction..there is key to every lock..sometimes it tests our patience n indurance..if u r
positive and see the world through it...u live life fully with meaning

Sunday, June 12, 2011

we remember..

i am living my life.it is full of incidents,happening,moments...that are somtimes light,full of
pleasure and sometime heavy,irritating and unwanted.but one thing is true about it..random
and unpredictable..whether i welcome them or curse..they will take their time and course.
...we react according to our mental state..and there is impression of the moment or incident on
our mind..which subsequently get stored in our मन ...after some time lapsed when our mind
remembers we experience only what ever it was stored at that time..that feeling..mental state
nothing more than that.if we smiled and rejoiced in severe pain..it is only feeling of rejoice
we will remember in .

so..why we don't make it a beautiful journey..after all time for play is lapsing slowly...and learn
to accept randomness...only way to cope it smartly

it has the essence of karmyog

Monday, April 4, 2011

ध्यान के लिए सहज हो कर लगो ..हमारा बाह्य मन अति चंचल है पर अंतर्मन ध्यान
में लग जाता है ..बाह्य मन की गति से विचलित मत हो वो समय लेता है ..ये मत सोचो की ध्यान
लगाने की कोसिस की पर लगा नहीं क्योंकि मन अलग अलग विषयों में घूम रहा था
अंतर्मन उस से जरूर प्रभावित होता है ..कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाता ॥

किसी भी अध्यात्मिक साधना की कसौटी है की मन हल्का होना चाहिए


सौजन्य -बाबूजी ,रामचंद्र मिसन